27 अप्रैल को भारत सरकार ने आखिरकार सभी छावनी क्षेत्र को समाप्त कर दिया। ये सभी क्षेत्र अब नगरपालिकाओं के अधीन आ गए हैं।छावनी क्षेत्र को सैन्य स्टेशनों में बदला जाएगा।क्या इसका प्रभाव सेना की सुरक्षा पर होगा?
सेना का छावनी क्षेत्र।
पूरे भारत में 62 छावनी क्षेत्र थे।ये सभी 1924 के छावनी अधिनियम के आधार पर स्थापित किए गए थे। छावनी क्षेत्र सैन्य अधिकारियों के रहने का स्थान था। जो रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आता था।छावनी क्षेत्रों में चार श्रेणियां थीं। जिसको जगह के आकार पर बांटा गया था।
सैन्य स्टेशन छावनी क्षेत्रों से अलग हैं। छावनी क्षेत्रों को सैन्य और नागरिक दोनों द्वारा नियंत्रित किया जाता था।लेकिन सैन्य स्टेशनों को केवल सेना द्वारा नियंत्रित किया जाएगा। साथ ही सैन्य स्टेशनों में परिवर्तन से छावनी की कॉलोनियल सोच को दुर किया जाएगा।
सैन्य स्टेशनों में परिवर्तन क्यों ?
समाप्त की जाने वाली पहली छावनी हिमाचल प्रदेश में यंग ऑफिसर लीविंग है। छावनी क्षेत्रों के लिए नागरिक और सेना के बीच भारी संघर्ष था।बहुत सी अनुमति के माध्यम से नागरिक अपने घरो में छोटे काम करा पाते थे।उन्हें सड़कों पर निर्माण की अनुमति नहीं थी। जब निर्मला सीतारमन रक्षा मंत्री थीं तो उन्होंने नागरिकों के लिए 850 सड़कों की अनुमति दी थी। फिर सुरक्षा के लिए सेना ने आपत्ति जताई थी। अब सैन्य स्टेशन वह क्षेत्र होगा जिसके पास वह स्थान होगा जो पूरी तरह से सैन्य बल के अधीन होगा।ये सभी चीजे नागरिकों और सेना के बीच हो रहे संघर्ष को कम करेगा।
मेरठ सबसे पुराना छावनी क्षेत्र था जो आज से 150 साल पहले 1803 मेें बना था। अंतिम छावनी क्षेत्र 1962 में अजमेर में बना था। 62 छावनी क्षेत्र में 1,57,000 एकड़ भूमि शामिल थी।