सर्वोच्च न्यायालय में समान लिंग विवाह कानूनी करने के लिए बहुत याचिका दायर की गई थी। 27 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई की और केंद्र सरकार से भी इसपर विचार मांगा गया। केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने विचार प्रस्तुत किया।
क्या हुई सुनवाई ?
तुषार मेहता ने अदालत से आग्रह किया कि इसे संसद पर छोड़ दिया जाए। न्यायालय समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के लिए कानून नहीं बना सकता।
केंद्र की तरफ से कुछ तर्क रखे गये।
1. अलग-अलग धर्म विपरीत लिंग यानी पुरुष और महिला होने पर विवाह को मान्यता देते हैं।
2. सुप्रीम कोर्ट ने 1954 के विशेष विवाह अधिनियम में समलैंगिक विवाह को शामिल करने का आदेश दिया था। उसपर केंद्र सरकार ने तर्क दिया की यह अधिनियम भी विभिन्न धर्मों के पर्सनल लॉ से ही निकला है तो ऐसा नहीं किया जा सकता है।
3. शादी में राज्य सरकार की कोई भागीदारी नहीं होने का तर्क था जिसे केंद्र ने नकार दिया है क्योंकि शादी का अधिकार निरपेक्ष है।हमें कानून के अनुसार नियम और विनियमों का पालन करना होगा।
4. अगर सरकार की कोई भूमिका नहीं है तो पाशविकता और अनाचार (जानवर और मनुष्य के संबंध )के कानून को भी चुनौती दी जाएगी।
5. निजता के अधिकार को इंटिमेट क्षेत्र के बजाय विवाह तक नहीं बढ़ाया जा सकता है।
सॉलिसिटर जनरल के मुताबिक अदालत को इस कानून से बाहर होना चाहिए और इसे संसद पर छोड़ देना चाहिए।क्योंकि LGBTQIA+ में 72 समुदाय हैं और अगर समान लिंग मेें शादी हो रही है तो भविष्य में टकराव होगा और हम हर व्यक्ति के लिए अलग अलग कानून नहीं बना सकते।हम पर्सनल लॉ को स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 से अलग नहीं कर सकते।क्योंकि तलाक,विरासत,गोद लेने जैसी चीजें हैं जो पर्सनल लॉ से जुड़ी हुई हैं।